"डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूं "

नौसिखिये परिंदों को बाज़ बनाता हूं ।।

चुपचाप सुनता हूं शिकायतें सबकी।

तब दुनिया बदलने की आवाज़ बनाता हूं ।।

समन्दर तो परखता है हौसले कश्तियों के,

और मैं, डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूं ।।

बनाये चाहे चाँद पर कोई बुर्ज ए खलीफा।

अरे, मैं तो कच्ची ईंटों से ताज बनाता हूं।।

ढूंढों मेरा मजहब जाके इन किताबों में।

मैं तो उन्हीं से आरती, नमाज़ बनाता हूं।।

न मुझसे सीखने आना कभी जंतर जुगाड़ के।

अरे! मैं तो मेहनत लगन के रीवाज़ बनाता हूं।।

ज्योतिषी छोड़ दो तारों को तकना तुम।

है जो आने वाला कल उसे मैं आज बनाता हूं।।

” शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं। #विनयशर्मा

 



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